anbindhe moti
गीत कैसे मौन हो !
दिशि अगम, तम निशि, गगन घन का
छोड़कर साथी फिरा मन का
पथ कठिन अब, गति शिथिल भी क्यों न हो !
बीण है, जब तक रहे बजती
तभी तक है हाथ में सजती
सुर न हों पर रोकनेवाले मुझे तुम कौन हो !
सिद्धि है यह साधना मेरी,
एक बस आराधना मेरी
कृपा की शुभ दृष्टि का क्या ! हो, न हो
गीत कैसे मौन हो !
1942