anbindhe moti
मुक्तक
स्तर पर स्तर पीले, लाल बादलों का क्रम
यह सांध्य-गगन शत-शत चित्रों का अलबम
आयी प्रात-समीर, करुण स्वर बह गया
प्रेयसि ! मेरा गीत अधूरा रह गया
दीप के तो हाथ बस मलना लिखा था
शलभ के ही भाग्य में जलना लिखा था
“प्राण ! तुम्हारे भले-बुरे की मुझसे परख न होती
हँसती हो तो फूल बरसते, रोती हो तो मोती
1940
देखें, मेरी आत्मकथा-“जिंदगी है कोई किताब नहीं” की पृष्ठ संख्या 35