antah salila

सब के हित एक-सा खिला
जो भी जिस भाव से मिला

तलवों में काँटे गड़ते रहे
होठों से प्रसून झड़ते रहे
भावों के ज्वार उमड़ते रहे

आस्था का स्वर नहीं हिला

अपने को विस्तृत कर दिया है
जग को अपने में भर लिया है
ज्वाला का समुद वरण किया है

आँधी में रहा झिलमिला
सब के हित एक-सा लिखा
जो भी जिस भाव से मिला

1968