अन्तःसलिला_Antah Salila
- मैं कवि के भावों की रानी
- मैं यौवन की पंखुरिया खोल रहा हूँ
- आत्म-चिंतन
- फूल खिला उसर में
- गीत में भर दो मेरा जीवन
- आजा ओ मेरे जीवन की
- जाने मैंने उस जीवन में
- मैं न रहूँगा
- मैं फिर एक उड़ान भरूँगा
- ओ मेरे जीवन की वीणा
- जीवन का क्षण-क्षण नाच रहा
- छाया कैसा यह इंद्र-जाल
- अयि अमर चेतने ज्योति-चरण !
- ऐसी मेरे मन की भाषा
- आधा यौवन हो चुका शेष
- ओ मन की हलचल ठहर, ठहर
- मुझको न व्यथा से बहलाओ
- तम से बंधा प्रकाश
- फिरता रहा चतुर्दिक जग में
- फट-फट मेरे पाँवों के पीछे
- मेरे लक्ष्य खो गया साथी
- धूप न रुचती, शीत
- कुछ भी नहीं किया
- ऐसे ही रहा
- मैंने यह सांप क्यों पकड़ा है
- फूल रे! झड़ने के दिन आये
- दुःख के नील घनों में
- हूँ शर बिंधा आखेट मैं
- मैंने मन का मोल किया था
- सबके हित एक सा खिला
- यह कैसा वर है
- मेरे मन में कोई राधा बेसुध
- मेरी इस पीड़ा का साक्षी
- मैंने जो लिखा है
- फिरे, सब फिरे
- निरुद्देश्य, निःसंबल, निश्क्रमित
- हम तो नाव डूबा कर
- यह रत्नों का हार किसे पहनाऊँ
- अब यह ध्वजा कौन पकड़ेगा
- पल-पल अन्धकार बढ़ता है
- रागिनी यह घर-घर गूँजेगी
- गीत का जीवन कितना है
- गाये जो ये गीत
- संध्या की वेला
- किसके लिए लिखूँ मैं
- गीत ये गूंजेगे उर-उर में
- आईना चूर हुआ लगता है
- गोरी तेरा मन किसने छीना
- तू क्यों आँसू व्यर्थ बहाए
- मैंने मरू में केसर बोई
- जग में चलाचली के मेले
- प्रेम की तेरे आज परीक्षा
- समझो बस प्रवास ही झेला
- यद्यपि यह प्रभात की वेला
- सुरों की धारा बहती जाती
- जी चुके जीवन को क्या जीना !
- जाने कौन व्यथा जीवन की !
- अब तुम नौका लेकर आये
- कहाँ तक जाएगी झंकार?
- हम तो शब्दों के व्यापारी
- भित्ति नहीं है कोई
- यदि वे दिन फिर आते
- साज नहीं सजता है
- जीवन गाते गाते बीते
- कहाँ जाइये किससे कहिये
- हम तो काँटे ही चुनते हैं
- कौन पीड़ा को सुर में गाता
- मेरे गीत तुम्हारा स्वर हो
- मुझे जग लगता सपने जैसा
- अब ये फूल फूल रस भीने
- ग़ज़ल कहो या गीत
- जीवन फिर से भी यदि पाऊँ
- कवि के मोहक वेश में
- कभी ज्यों नभ-पथ से आती हो
• “आपकी प्रतिभा ने अनेकरूपात्मक विकास कर लिया है। आप हिन्दी के परम समर्थ कवि हो गये हैं, इसमें किसी प्रकार का संदेह नहीं है।”
-पं. विश्वननाथ प्रसाद मिश्र