antah salila

तू क्‍यों आँसू व्यर्थ बहाये!
कितने सागर-मंथन पर ये मोती तूने पाये।

फूल देवपति की माला के
कर्णाभूषण सुरबाला के
ये तेरी अंतर्ज्वाला के

तप से छनकर आये

तू अपनी पीड़ा को स्वर दे
शब्दों में यह क्रंदन भर दें
अगजग छवि से जगमग कर दे

दुख भी सुख बन जाये

तू क्‍यों आँसू व्यर्थ बहाये!
कितने सागर-मंथन पर ये मोती तूने पाये!