antah salila

जग में चलाचली के मेले
जाने कहाँ लिये जाते हैं ये लहरों के रेले!

वे बचपन के बंधु कहाँ जो साथ हमारे खेले!
भीड़ बढ़ी जाती है फिर भी हम हो रहे अकेले
पग-पग पर पीड़ा बिछुड़न की, दुख भय, कष्ट, झमेले
कौन गया है पार बिना इन तूफानों को झेले!
फिर भी हमने शब्दों के कुछ महल रचे अलबेले
जिसका जी चाहे पल दो-पल इनमें आश्रय ले ले

जग में चलाचली के मेले
जाने कहाँ लिये जाते हैं ये लहरों के रेले!