antah salila

आ जा, ओ मेरे जीवन की तम से भरी विभावरी!

देख चुका श्रृंगार सुनहले
अरुण अधर के चुंबन पहले
आ, तू भी दो पल को रह ले
कुछ सुस्ता ही लेगा यह मन-मधुकर भरता भाँवरी
मनचाही कब हुई हमारी!
सुख के बाद दुखों की बारी
फूलेगी फिर भी यह क्यारी
मेरी ऐसी दशा देखकर रो मत दुख से, बावरी!
करुणामयि! कठोर अपने पर
स्वर्ण बनूँगा मैं तपने पर
हँस न, अरी! इस सुख-सपने पर
दूर क्षितिज में, देख, बज रही आशा की आसावरी
आ जा, ओ मेरे जीवन की तम से भरी विभावरी!

1943