bhakti ganga
अक्षय है भण्डार तेरा
फिर मेरे ही लिये शेष क्यों हो जायेगा प्यार तेरा?
जब तक मेरे स्वर में तेरे स्वर का घोष रहेगा
दाता! तब तक कभी न मेरा रीता कोष रहेगा
मैं हाथों से धरे हुए हूँ आँचल भली प्रकार तेरा
यदि तेरी विभुता अनंत है, मैं किस भाँति चुकूँगा!
तू न रुकेगा जब तक, तब तक मैं भी नहीं रुकूँगा
मैं ही कैसे मिट जाऊँगा, जब शाश्वत् संसार तेरा!
अक्षय है भण्डार तेरा
फिर मेरे ही लिये शेष क्यों हो जायेगा प्यार तेरा?