bhakti ganga
क्यों तू चिंता करे अभागे?
क्यों न टेरता उसे, नाम लेते जिसका दुःख भागे!
अणु से ले अनंत अम्बर तक
सुध रखता सबकी जो सम्यक्
क्यों तू उसे भूलाकर, मूरख!
बुनता कच्चे धागे
जिसके सिर भव-चिंता सारी
तेरा ही दुःख उसको भारी
क्या न तुझे नित साँसें प्यारी
देता वह बेमाँगे!
क्या अपार बल-वैभव पाये!
जग का कुल जग में रह जाये
क्यों न उसी पर नयन टिकाये
साथ रहे जो आगे!
क्यों तू चिंता करे अभागे?
क्यों न टेरता उसे, नाम लेते जिसका दुःख भागे!