bhakti ganga

क्यों तू माला व्यर्थ बनाये!
सूखे फूल, टूटता धागा, हाथ थके अलसाये

बीत गयी पूजा की वेला
उखड़ चुका रंगों का मेला
क्यों अब भी तू बैठ अकेला

इसे गूँथता जाये!

जब तक लड़ियाँ जुड़ पायेंगी
तेरी आँखें मुँद जायेंगी
नव पंक्तियाँ यहाँ आयेंगी

कल नव हार सजाये

यह हठ छोड़, तोड़ दे धागे
माला बन तू आप, अभागे!
धन्य वही जो बढ़कर आगे

निज को भेंट चढ़ाये

क्यों तू माला व्यर्थ बनाये!
सूखे फूल, टूटता धागा, हाथ थके अलसाये