bhakti ganga
काल की हो अनंत भी धारा
पर क्या अमिट न मैं भी जल में बिंबित तेरे द्वारा!
जब इस धारा में बहना है
तेरा साथ सदा रहना है
तो फिर कुछ न मुझे कहना है
मुक्ति रहे या कारा
ग्राह लाख घेरें संशय के
अगति, विनाश, विलुप्ति, विलय के
पाकर तुझसे मंत्र अभय के
मरूँ न उनका मारा
यदि पूरे न परीक्षा मेरी
रहूँ निरंतर देता फेरी
लीलाभूमि जानकर तेरी
प्रिय हो यह जग सारा
काल की हो अनंत भी धारा
पर क्या अमिट न मैं भी जल में बिंबित तेरे द्वारा!