bhakti ganga

अपना बानक आप बनाओ
मुझको तो बस बीच-बीच में झलक दिखाते जाओ

नाम-रूप कुछ भी धर लो, जी चाहे जैसे आओ
पर जब मैं पहिचान न पाऊँ, धीरे से मुस्काओ

विघ्नों को आने दो जी भर, कितना भी भटकाओ

पर जब मुझे हारता देखो, सिर पर हाथ फिराओ
तुम्हें भूल भी जाऊँ मैं, पर तुम मुझको न भुलाओ

हँस कर तुरत भागता आऊँ जब बाँहें फैलाओ

अपना बानक आप बनाओ
मुझको तो बस बीच-बीच में झलक दिखाते जाओ