bhakti ganga

अपनी सेवा का अवसर दे
और जिसे चाहे सो दे दे , मुझको बस यह वर दे

सेवा में ही सब कुछ पाऊँ
और न कुछ भी मन में लाऊँ
उसी तान पर नाचूँ, गाऊँ

तू जिसके सुर भर दे

फूल न उठूँ सफलता पाकर
ध्यान रहे, हम हैं मुहरे भर
तू दो पल को जिसे, जहाँ पर

जैसे चाहे धर दे

जब हट जाय भीड़ का रेला
मैं सेवा में रहूँ अकेला
चाहूँ बस, पुस्तक आगे ला

तू हस्ताक्षर कर दे

अपनी सेवा का अवसर दे
और जिसे चाहे सो दे दे , मुझको बस यह वर दे