bhakti ganga

कौन इस पीड़ा को पहिचाने!
या तो मन जाने, प्रभु! मेरा, या फिर तू ही जाने

रहते हैं भय, संशय घेरे
तप, संयम से हूँ मुँह फेरे
फिर भी बैठा हूँ मैं, तेरे

दर्शन का हठ ठाने

यद्यपि जीवन विफल जिया है
कनक-पात्र से गरल पिया है
तेरा पथ धरने न दिया है

भोगों की तृष्णा ने

फिर भी जिद, नभ तक यश छाये
कुछ न अलभ्य मुझे रह पाये
जग का तो सब सुख मिल जाये

तू भी सेवक माने

कौन इस पीड़ा को पहिचाने!
या तो मन जाने, प्रभु! मेरा, या फिर तू ही जाने