bhakti ganga
कौन-सा रूप ध्यान में लाऊँ!
इतने वेश बदलते स्वामी! किस पर नयन टिकाऊँ?
कभी यशोदा का आँचल धर
माँग रहे माखन रो-रोकर
कभी कुंज में यमुना-तट पर
वेणु बजाते पाऊँ
कभी चुराकर माखन खायें
कभी विराट रूप दिखलायें
शेष न होंगी वे लीलायें
जीवन भर भी गाऊँ
किन्तु प्रेम, प्रभु! कैसा साधा!
ब्रज का मिलन रह गया आधा!
सिसक रही है विरहिन राधा
कैसे उसे मनाऊँ?
कौन-सा रूप ध्यान में लाऊँ!
इतने वेश बदलते स्वामी! किस पर नयन टिकाऊँ?