bikhare phool
मुझे जग लगता सपने जैसा
ज्यों जल का प्रतिबिंब लगे छूते ही कँपने जैसा
प्रेम-भाव दिखलाकर पल भर
भाग रहे हैं सभी निरंतर
एक नहीं ऐसा जो रुककर
मिल ले अपने जैसा
घिरे हुए अनजाने भय से
सभी विवश, यंत्रित, निर्दय-से
मधुर मिलन-क्षण भी हो जैसे
पलकें झंपने जैसा
मुझे जग लगता सपने जैसा
ज्यों जल का प्रतिबिंब लगे छूते ही कँपने जैसा