bikhare phool
ग़ज़ल कहो या गीत
दोनों ही हैं मेरे जीवन-मंथन के नवनीत
चला न हो कुछ जोर भाग्य से नहीं सके हों जीत
पर शब्दों में उसे पा लिया जो था मन का मीत
सुख के दिन या दुःख की रातें, सभी गये हों बीत
मेरे स्वर्णपात्र में अब भी हैं वे कालातीत
पीड़ा की रागिनी मधुर यह करुणा का संगीत
प्रेम-विकल मानस से फूटी यह जाह्नवी पुनीत
ग़ज़ल कहो या गीत
दोनों ही हैं मेरे जीवन-मंथन के नवनीत