boonde jo moti ban gayee
अधरों पर परिचित मुस्कान लिये,
जब अँधेरी रात में
तुम दीपशिखा के समान
मेरे पास आती हो
तो तुम्हारे द्वारा प्रकाशित
मील के पत्थर-सा
मैं एक अनूठे आलोक से भर जाता हूँ,
किंतु क्षण भर बाद ही
जब उपेक्षाभरी दृष्टि डालती,
मुझे छोड़कर आगे बढ़ जाती हो
तो अपनी विवशता पर सिर धुनता
पहले से भी अधिक गहरे
अंधकार में उतर जाता हूँ।