boonde jo moti ban gayee
आँसू की कुछ बूँदें तो
मेरी आँखों से ढुलककर
बरौनियों पर बंदनवार-सी तन गयी हैं
और कुछ गालों को भिगोती हुई
धरती पर गिरकर
धूल और मिट्टी में सन गयी हैं,
किंतु कुछ ऐसी भी हैं
जो स्वाति-कणों-सी
तुम्हारे आँचल में पहुँचकर मोती बन गयी हैं।