boonde jo moti ban gayee

यह कब कैसे घटित हुआ
कि तुम्हारा उन्मुक्त हँसता आनन
सहसा सकुच गया
और मेरा हृदय
डाल से टूटे फूल की तरह
उन चाँदनी धुले चरणों में पहुँच गया।

आकाश की निरभ्र नीलिमा में
उषा की लाली कब छायी थी,
पता नहीं !
कच्चे दूध-सी उन चितवनों में
केसर की सुगंध कब लहरायी थी,
पता नहीं !

क्या उस क्षण
जब तुम्हारी आँखों की किरकिरी
मैंने फूँक-फूँककर निकाली थी!
या उस क्षण
जब मेरी रक्तसनी उँगली के लिए
तुमने अपनी रेशमी साड़ी फाड़ डाली थी!
कब हम इतने निकट आ गये थे
कि तुम्हारी चेतना के दर्पण में
मुझे अपनी छाया दिखाई देने लगी थी
और मेरे धड़क रहे हृदय में
तुम्हें अपने हृदय की धड़कन सुनाई देने लगी थी!

उस समय हमें ऐसा लगा था
कि हमारा कहीं कुछ खो गया है,
हम समझ ही नहीं पाये थे
कि एकाएक यह क्या हो गया है !
सचमुच, कुछ क्षण ऐसे होते हैं
जब बिना पाये ही हम सब कुछ पा जाते हैं,
बिना दिये ही
सब कुछ दे आते हैं।

यह कब, कैसे घटित हुआ
कि तुम्हारा उन्मुक्त हँतता आनन सहसा सकुच गया
और मेरा हृदय बिना कुछ जाने, बिना कुछ सुने
उन चाँदनीधुले चरणों में पहुँच गया।