boonde jo moti ban gayee
हर संध्या का एक नया नाम होना चाहिए।
एक संध्या वह जो तुम्हारी राहों में गुजरी है
और एक वह जो तुम्हारी बाँहों में गुजरी है
दोनों एक जैसी ही कैसे हो सकती हैं!
एक को शंकिता, एक को पूर्णकाम होना चाहिए।
हर संध्या तुम्हारे मिलने का अलग ढंग होता है
ओंठों पर नयी हँसी, आँखों में नया रंग होता है
हर संध्या मुझे तुम भिन्न दिखाई देती हो
हर संध्या तुम्हारे मौन में नया आयाम होना चाहिए।
यों तो रातें भी कहाँ व्यतीत एक तरह होती हैं!
कुछ काजल-सी काली और कुछ कस्तूरी-सी महमह होती है
लेकिन सच कहूँ तो संध्या की बात कुछ और ही है
इसमें तुम्हारा रूप सभी के लिए आम होना चाहिए।
हर संध्या का एक नया नाम होना चाहिए।