chandan ki kalam shahad mein dubo dubo kar

क्या सुनिए! क्‍या कहिए
अंधों में हाथी ले आये, सिर धुन-धुनकर रहिए

कुछ बोले ‘है तना ताड़ का,’ कुछ बोले ‘अजगर है’,
कुछ बोले, ‘गर्भिणी भैंस चढ़ गयी एक छत पर है,’
जितने मुँह उतनी ही बातें, सब सुनिए, सब सहिए

गेहूँ बोनेवालों को हमने गुलाब दिखलाया
चर्मकार-आवासों में चंदन का पेड़ लगाया
नहीं कभी यह जी में आया–‘ धारा के सँग बहिए’

सत्य बड़ा है फिर भी अक्सर दाँव हार जाता हैं
चतुराई की नाव बिना, कब, कौन पार जाता है!
बिना युक्ति के निकल न पाते, धँसे पंक में पहिए

क़्या सुनिए! क्या कहिए!
अंधों में हाथी ले आये, सिर घुन-धुनकर रहिए

1983