चन्दन की कलम शहद में डुबो-डुबोकर_Chandan Ki kalam Shahad Mein Dubo Dubo kar
- अंतिम प्रणाम लो हे अनंत पथ के यात्री !
- किसने पिघले हुए अनल को पीने का हठ ठाना !
- क्या सुनिए, क्या कहिये – अंधों में हाथी ले आये
- जन-मन नायक! हे जन-गायक! जन-जीवन ध्रुवतारा
- जब अपनी तुलना करता हूँ मैं कवि तुलसीदास से
- जय हो, हे हिन्दी उद्धारक!
- निर्वेद
- पूरब-पश्चिम दोनों दिशि से उमड़ रही है आग
- पराधीनता-निशा कट गयी
- बहुत माना हठी था, तेज था, तर्रार था नेहरू
- रामनवमी
- वंदी – मृत्युदंड सुनते ही
- सैनिक से – तुम रुकते तो रुक जाता है
- “ग़ज़ल की रवानी, गीतों की संपन्न अनुभूति एवं नाट्य-कृतियों के-से संवाद स्वाभाविक भाषा एवं सहज संवेद्य शैली में ’चन्दन की कलम शहद में डुबो-डुबोकर’ में आये हैं। सफल कृति के लिये सफल सर्जक के प्रति हार्दिक श्रद्धा एवं आह्लाद के भाव-सुमन अर्पित करता हूँ। “
-डॉ॰ हंसराज त्रिपाठी (तिलक डिग्री कॉलेज, प्रतापगढ़, उ. प्र.)