chandan ki kalam shahad mein dubo dubo kar

बिहार हिन्दी साहित्य सम्मलेन, गयाअधिवेशन

जन-मन नायक! हे जन-गायक! जन-जीवन ध्रुवतारा
हे प्रबुद्ध! इस बुद्ध भूमि में स्वागत आज तुम्हारा

वीणा-वादिनि! उर-आह्लादिनी! कवि-कुल-नाद-तरंगे !
गगन-विहारिणि! जग-जन-तारिणि! अयि साहित्यिक गंगे।
स्वागत हे नव-रस भागीरथि! आओ इस मरु-पथ पर
अंत:-सलिले! स्नेह-ऊर्मिले! करुणा-कुसुमित-अंगे।

फूटे त्वरित, भरित सुषमा से स्वर-सरस्वती-धारा

तुलसी-सूर-कबीर-कूजिता, पूजित देव-बिहारी
भारत-भाल-भाग्य-बिंदी हिन्दी के अहे पुजारी!
स्वागत करती डरती-डरती, दीन-हीन यह नगरी
चिर-अभिशप्ता, जरासंध की यह तप्ता फुलवारी

नहीं यहाँ कोकिल का कूजन, नहीं राजपथ न्यारा

अनुक्षण-गर्जित, कण-सुख-वर्जित, वाहक काल-सरित के!
चिर-आनंदित ! हे. स्वर्वदित! योग तुम्हीं सत-चित्‌ के
अमृत-विलासी ! जगत-प्रकाशी! हे मृदुभाषी हित के!
रस-सिंचन-वंचित क्या अब भी प्राण-प्रसून तृषित के!

भावों से अभाव को ढँकती कवि-भारती उदारा
जन-मन नायक! हे जन-गायक! जन-जीवन ध्रुवतारा
हे प्रबुद्ध! इस बुद्ध भूमि में स्वागत आज तुम्हारा

1949