chandan ki kalam shahad mein dubo dubo kar

प्रथम स्वाधीनता-दिवस के अवसर पर

पराधीनता-निशा कट गयी, स्वप्न ब्रिटिश-साम्राज्य हुआ है
पहली बार आज ही अपने घर में अपना राज्य हुआ है
प्रथम बार अपने उपवन में, फूल और कलियाँ अपनी हैं
अपनी भूमि, व्योम है अपना, अपनी धूप, हवा अपनी है
लौट गये कितने ही सावन, आँखों से पानी बरसाकर
आज उठा है बूढ़ा भारत, फिर से नयी जवानी पाकर
छिली एड़ियाँ, क्रूर बेड़ियों का टखनों पर दाग पड़ा है
शीश उठा, अपने पाँवों पर वंदी आज स्वतंत्र खड़ा है
आयी स्वतंत्रता आर्यो की, सीता-सी रावण के घर से
गंगा जय-अभिषेक कर रही, सुमन-वृष्टि होती अंबर से

आओ पृथ्वीराज! सँभालो फिर से अपनी प्यारी दिल्ली
आज युगों के बाद तुम्हारी लौटी राजदुलारी दिल्ली
पलटा दिन, इतिहास, भाग्य ने पुन: आज अँगड़ाई ली है
प्रथम बार खुल गयी सवा मन की श्रृंखला कलाई की है
पराधीनता की वह रजनी, पूछो मत, कैसे काटी है
भूल न पाती, लिये हृदय में घाव खड़ी हल्दीघाटी है
खाते हुए घास की रोटी, भाला लिये फिरे वन-बन में
चमक रहा शोणित प्रताप का, अरावली-गिरि के कण-कण में
कौन-कौन सी सही न तूने, देवभूमि! आपदा, व्यथायें!
राजस्थान! लिखी हैं तेरी छाती पर वे करुण कथायें

कितनी बार रचे जौहर, वधुओं ने साज सजे घर-घर में!
जिन्हें असह थी शीत चंद्रिका, उतर गयीं वे ज्वाला-सर में
पर न फिरी रूठी स्वतंत्रता, हार गले का हार हो गयी
टकराकर दुर्देव शिला से टूक-टूक तलवार हो गयी
व्यर्थ हुए वर सभी, भवानी से मस्तक देकर जो माँगे.
लौटी मरहट्टों की टुकड़ी, शिवा अश्व पर आगे-आगे
लक्ष्य हाथ में आते-आते, शुक-सा अंतर्धान हो गया
साक्षी है इतिहास, काल पानीपत का मैदान हो गया

आज विगत कौ भूल, पराजय फिर से नहीं सुनानी होगी
पराधीनता भारत की, शिशुओं के लिए कहानी होगी
लौट रहे बनजारे, उनकी हाट बंद होती है, देखो
छिंपो न कुँवर सिंह, लक्ष्मी अब तक भी क्‍यों सोती है, देखो
आओ लौट, सुभाष | न अब दर-दर की ठोकर खानी होगी
आज तुम्हींको लाल किले पर विजय-ध्वजा फहरानी होगी
आज अमर कवि के स्वप्नों का नंदन उतर पड़ा है भू पर
हिमपति खड़ा दहाड़ रहा है किये तिरंगा झंडा ऊपर

15 -8-1947