chandan ki kalam shahad mein dubo dubo kar

1965 के पाकिस्तानी आक्रमण पर

पूरब-पश्चिम दोनों दिशि से उमड़ रही है आग
घर में अर्गल लगा शान्ति से सोनेवाले! जाग

जिसे सभ्यता, शांति, स्नेह का पाठ पढ़ाया तूने
भाई कहकर बड़े प्रेम से गले लगाया तूने
जिसे तुष्ट करने युग-युग का स्वत्व लुटाया तूने
छोड़ दिया हिम-मंदिर सुंदर सजा-सजाया तूने

आज एशिया का वह दानव रहा नयी बलि माँग

ताजमहल, एलोरा और अजंता की दीवारें
यह लहलही फसल खेतों की, केसर के फव्बारे
ये नांगल, भाखरा, नये मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे,
माना, तूने निज शोणित से ये सब रचे, सँवारे

विफल न पर हों जाय कहीं यह सारा ही तप-त्याग

सिर देकर ही स्वतंत्रता का मूल्य चुकाना पड़ता
तलवारों पर चढ़कर ही इस घर में आना पड़ता
पल-भर सोये जहाँ वहीं इतिहास पुराना पड़ता
एक चूक के लिए पीढ़ियों तक पछताना पड़ता

लाख आँसुओं से न धुलेगा फिर धरती का दाग़

आधी आग बुझेगी, ज्यों ही तू कुछ करवट लेगा
पहले तलवारों पर पानी चढ़े, बाग पट लेगा
प्रथम करेगा वार न तू, सम्मुख मंगल-घट लेगा
फिर भी आकर जिसको बरबस कटना है, कट लेगा

रण होगा तो चंडी का भी देना होगा भाग

निज बल का आधार न जिनको, पर के बल जीते हैं
अपमानित भी विवश, खून का घूँट वही पीते हैं
भय के बिना न प्रीति, शक्ति के बिना न्याय रीते हैं
मानव की वन्यावस्था के दिन न अभी बीते हैं

क्षीण-कंठ तू गा न सकेगा कभी शान्ति का राग
पूरब-पश्चिम दोनों दिशि से उमड़ रही है आग
घर में अर्गल लगा शान्ति से सोनेवाले जाग

1965