chandni

अविरल प्रिय का पंथ निरखती ऊँघ रहीं पलकें मदमाती

दुग्ध-धवल हिम सेज सजीली
झालर नभ की नीली-नीली
रजत बेल-बूटों-सी फबतीं
मेघ, नखत-पाँतें चमकीली

टँकी हुई सलमे-सी किरणों की पच्चीकारी मन भाती

झरती नभ से ज्योति सुनहरी
चूम रही शशि का मुख लहरी
फूलों को गलबहियाँ देकर
प्रकृति नींद में सोयी गहरी

निर्जन कुंजों में छाया-तरुणी सुहाग की रात मनाती

मलय-दूतिका बहती मंथर
फैला जुगुनू के लघु-लघु पर
स्पंद-हीन तरु के नीड़ों में
सोये खग-शावक अलसाकर

मरकत-शाखा पर बैठी चकवी विहाग की कड़ियाँ गाती

बीत चली है रजनी आधी
झींगुर ने भी चुप्पी साधी
चित्रित युग पुतलियाँ
प्रतीक्षा की निस्सीम डोर में बाँधी

जलती है नीरव कोने में कंप-हीन दीपक की बाती
अपलक प्रिय का पंथ निरखती ऊँघ रहीं पलकें मदमाती

1939