chandni

चाँदनी भटक रही निर्जन में

मलय-चरण रखती उतावली
सँग-सँग छाया-सखी साँवली
फिरती कुंजों बीच बावली

खोंसे इंदु-कुंद-कलिका नीले वेणी-गुंफन में

झरतीं जुगनू को फुलझरियाँ
कुसुमित द्रुम, निकुंज-मंजरियाँ
स्वागत करतीं वन की परियाँ

प्रीति-साज हैं सजे सभी ऋतुपति के राजभवन में

कलियाँ रज पर पड़ी बिलखतीं
लुटा तुहिन-मुक्तावलि सस्ती
वह बढ़ जाती हँसती-हँसती

रुककर देखे बिना मची हलचल कैसी त्रिभुवन में
चाँदनी भटक रही निर्जन में

1941