diya jag ko tujhse jo paya

अब मैं शरण तुम्हारी
डोर तुम्हारे ही कर में है अब कैलाशबिहारी!

विधि ने तो भेजा नर-तन में
पाये सब सुख विष्णु-चरण में
भरो शान्ति अब तुम जीवन में

नाथ! तुम्हारी बारी

आगे जो पड़ाव पहला है
वहाँ न पर का जोर चला है
एक तुम्हारी चन्द्रकला है

मोह-शोक-भय-हारी

वहाँ तुम्हीं से, हे कालेश्वर!
पाता जग नव जीवन का वर
दे स्वभक्ति, रखना दृढ़ अंतर

हो न कालगति भारी

अब मैं शरण तुम्हारी
डोर तुम्हारे ही कर में है अब कैलाशबिहारी!