diya jag ko tujhse jo paya
काल! यह सृष्टि तुझीसे हारी
बच पाये तुझसे, ऐसा है कौन यहाँ तनुधारी!
तेरे यज्ञकुण्ड में क्षण-क्षण
समा रहे हैं कुल जड़-चेतन
मुझको तो कर देती उन्मन
यह लीला भयकारी
क्या न निरंतर हृदय कँपाये
चिर-विलुप्ति की दुश्चिंतायें!
बता, लोग कैसे सह पायें
प्रिय-वियोग-दुख भारी
पर, सच कह दूँ तो गति तेरी
करती केवल हेराफेरी
डर है व्यर्थ, चेतना मेरी
मरे न उसकी मारी
काल! यह सृष्टि तुझीसे हारी
बच पाये तुझसे, ऐसा है कौन यहाँ तनुधारी!