diya jag ko tujhse jo paya

नज़र से होंठ पर, होंठों से दिल में जा पहुँचा
इनाम और क्या पाता भला मैं इसके सिवा

हुस्न को और निखारा है आँसुओं ने मेरे
भुला न पाओगे इस दिल के तड़पने की अदा

कभी तो उससे बहार आयेगी सहरा में भी
मैंने की है जो यहाँ प्यार के रँग की बरखा

मुझे यकीन है जाकर भी मैं रहूँगा यहीं
मेरे हर लफ़्ज़ में धड़का करेगा दिल मेरा

आज जी चाहे जहाँ सज लो, खिल रहा है गुलाब
फिर नहीं बाग़ में आयेगा कोई फूल ऐसा