diya jag ko tujhse jo paya
नाविक! ले जा अपनी नाव
इस तट पर आकर अब मेरे ठहर गये हैं पाँव
जब उस तट को अकुलाऊँगा
फिर से नाव नयी पाऊँगा
यहीं तनिक अब सुस्ताऊँगा
देखूँगा यह गाँव
मेरे गुरुजन, बंधु, सनेही
पहुँच गये थे जो पहले ही
क्या न मिलेंगे छाया-देही
डाले यहाँ पड़ाव!
पूछेगी जब धरती माता
कहना, छुटा न तुझसे नाता
फिर-फिर यहाँ रहूँगा आता
ले निज कृति का चाव’
नाविक! ले जा अपनी नाव
इस तट पर आकर अब मेरे ठहर गये हैं पाँव