diya jag ko tujhse jo paya
नाम-रूप दोनों हों झूठे
किन्तु नाम भी मरण-वायु से क्या जल के बुद्बुद-सा फूटे
रूप मिटे आँखों के आगे
पर क्या विदा नाम भी माँगे!
मर कर यदि दोनों को त्यागे
मन सुनाम से क्या सुख लूटे!
चित् को यदि न नाम से बाँधे
जगवासी कैसे आराधें!
कैसे प्रेम-भावना साधें
जब आधार रूप का छूटे?
यदि मरणोत्तर जीवन हो भ्रम
क्यों भावी यश हेतु करें श्रम!
पर यदि शाश्वत है जीवन-क्रम
यह संपर्क-सूत्र क्यों टूटे!
नाम-रूप दोनों हों झूठे
किन्तु नाम भी मरण-वायु से क्या जल के बुद्बुद-सा फूटे