diya jag ko tujhse jo paya
पेड़ तो रोपे कई हज़ार
जाने, कहाँ रहूँ मैं पर जब हो इनका श्रृंगार !
जब इनमें फल-फूल लगेंगे
लोग मुझे तब भुला सकेंगे !
कुछ तो तप को आदर देंगे
ऋण न करें स्वीकार!
क्या ये पा नित प्राण प्रकृति से
हारेंगे न काल की गति से?
या विलुप्त हो जग की स्मृति से
बन जाएँगे क्षार?
पर क्यों मरूँ व्यर्थ संशय में!
जड़ है इनकी लोक-हृदय में
छोड़ूँ मैं जब अंत समय में
सुधि लेगा संसार
पेड़ तो रोपे कई हज़ार
जाने, कहाँ रहूँ मैं पर जब हो इनका श्रृंगार !