diya jag ko tujhse jo paya

प्राण तेरे सुर में हैं ढाले
ओ वादक ! अपनी वंशी की धुन पर मुझे बजा ले

जग के सुर ने बहुत लुभाया
मैंने झूम-झूम कर गाया
सिवा दुखों के पर क्या पाया

भोगों की तृष्णा ले

चाहा तो था, प्रेम-मन्त्र पढ़
जगती को दूँ नव छवि से मढ़
पर अपने को भी न सका गढ़

बस, कागज़ रँग डाले

अब तो एक भरोसा तेरा
कुल प्रलोभनों से मुँह फेरा
किसकी शरण जाये मन मेरा

यदि तू भी न सँभाले

प्राण तेरे सुर में हैं ढाले
ओ वादक ! अपनी वंशी की धुन पर मुझे बजा ले