diya jag ko tujhse jo paya
बासी फूल नहीं लाऊँगा
तुझे शेष तक ताज़ा फूलों की माला ही पहनाऊँगा
अंजलि में ले भावों का जल
रख निज शब्दों के तुलसीदल
अर्पित कर प्रभु! तुझे काव्य-फल
परम शान्ति पाऊँगा
नाम-रूप तो जग में छूटे
क्यों निज कृति से नाता टूटे!
जब कोई पढ़कर सुख लूटे
मैं भी जुड़ जाऊँगा
मिटे ज्योति, तम लाख गरज ले!
तेरा आशिष पा, पदरज ले
फिर भूपर आ, नव सजधज ले
नव सुर में गाऊँगा
बासी फूल नहीं लाऊँगा
तुझे शेष तक ताज़ा फूलों की माला ही पहनाऊँगा