diya jag ko tujhse jo paya

भले ही सब मिटता जाता है
पर, धरती माता! तुझसे शाश्वत मेरा नाता है

खले मिलन में चिर-विराम भी
फिर-फिर बदलें रूप-नाम भी
छोड़ तुझे वैकुण्ठ धाम भी

मुझे नहीं भाता है

सजें लाख नभ में तारागण
तुझ-सा कहाँ स्नेह-आकर्षण
है विश्वास मुझे तो, चेतन

लौट यहीं आता है

कभी दिखे भी कुछ निर्ममता
कम न कभी, माँ! तेरी ममता
तेरे ही रस से पा क्षमता

मेरा कवि गाता है

भले ही सब मिटता जाता है
पर, धरती माता! तुझसे शाश्वत मेरा नाता है