diya jag ko tujhse jo paya

शत नमन तुझे, ओ महाकाल!
तेरी ही अविगत सत्ता से शासित है यह संसृति विशाल

ये सूर्य, चन्द्र, तारे समस्त
तुझमें ही होते उदित, अस्त
तू क्षण-क्षण है कर रहा ध्वस्त

ब्रह्माण्ड अमित नभ में उछाल

कह, जग में ऐसा कौन बचा
तू जिसे न खाकर गया पचा
स्मारक, कविता, इतिहास रचा

हम मन को बस लेते सँभाल

जब मिल न सकेगा नया सृजन
तू निज को कर लेगा भक्षण
तब बता कि पायेगा चेतन

कैसे फिर से यह रूप-जाल

शत नमन तुझे, ओ महाकाल!
तेरी ही अविगत सत्ता से शासित है यह संसृति विशाल