ek chandrabimb thahra huwa

जब सृष्टि की रचना करतें-करते
विधाता के हाथ थक गये थे,
तो उसने धीरे से एक ग़ज़ल गुनगुनायी थी,
नारी का रूप धारण करके
वही धरती पर उत्तर आयी थी।