ek chandrabimb thahra huwa

जितने फूल पूजा में चढ़ाये जाते हैं
क्या वे सभी देवता के मन को भाते हैं!
फिर भी देवता मुँह से कुछ नहीं कहते हैं,
एक-सी ही स्नेहमय दृष्टि से
सबको देखते रहते हैं;
तुम भी तो वैसा ही कुछ कर सकती हो,
मुस्कुराकर मत देखो,
तटस्थता का स्वाँग तो भर सकती हो;
मैं मन-ही-मन तुम्हें प्यार करूँ,
इससे तुम्हारा क्या जाता है !
तुम्हें इससे झूंझलाहट क्‍यों होती है ?
क्रोध क्यों आता है ?