ek chandrabimb thahra huwa
जो लहर तट को छुए बिना लौट जाती है
उसीकी पुकार तो सागर का संगीत बनकर लहराती है,
जो प्याला ओंठों तक पहुँचते-पहुँचते
हाथ से छूट पड़ता है
उसीका नशा तो
कंठ से गीत बनकर फूट पड़ता है;
मैं तुम्हें पा नहीं सका हूँ,
इसीलिए तो तुम्हें भुला नहीं सका हूँ।