ek chandrabimb thahra huwa
तुम्हारी सुगंध से भीनी साँसें व्यर्थ जा रही हैं,
इनसे मेरे ओंठों पर बाँसुरी बज सकती थी;
तुम्हारी चितवनों के गुलाब निष्फल कुम्हला रहे हैं,
इनसे मेरी वीरान बगिया सज सकती थी;
तुम्हारे प्राणों से उठती झंकार
मेरी संपूर्ण चेतना को गीतमय बना सकती थी,
तुम्हारे रूप की चाँदनी,
मेरी अँधरी रातों को जगमगा सकती थी;
बहुत कुछ हो सकता था तुम्हारी एक दृष्टि से,
सब मेरे मन की भावना रह गयी,
बहुत कुछ पा सकता था मैं
तुम्हारी एक मुस्कान से,
सब केवल संभावना रह गयी।