ek chandrabimb thahra huwa

रात भर वर्षा हुई है,
धरती की समस्त आर्द्रता
तुम्हारी पलकों में सिमटी हुई है,
फिर भी यह मुस्कान
कितनी ताज़ा है|! कितनी अनछुई है!