ek chandrabimb thahra huwa
रूप देखा तो जा सकता है
पाया नहीं जा सकता,
वह चंद्रबिंब के समान है
जिसे लहरों पर से उठाया नहीं जा सकता।
उसे आप हथेली से झिलमिला दे सकते हैं,
कंकर फेंककर जरा-सा तिलमिला दे सकते हैं,
पर जल को कितना भी अंजलि में भरकर पीते रहें,
बिंब वहीं-का-वहीं रहेगा,
रूप विधाता का सार्वभौम वरदान है,
वह कभी एक का होकर नहीं रहेगा।