gandhi bharati
बन आलोक प्राण में आओ, आत्मा को दो शीतल स्पर्श!
सुधाधार बनकर बरसो, हे विश्वाधार! हृदय-नभ में,
जीवन में गति बनो, भाव में शांति, मुग्ध मानस में हर्ष,
अंतर में चेतना, बुद्धि में ओज, दृष्टि शुभ की सबमें
बने अमर विश्वास तुम्हारा मानवता का ज्योतिस्तंभ
जिसकी मृदुल विभा में राष्ट्रों की भटकी तरणियाँ अनेक
लक्ष्य ढूँढ़ लें अपना, चिति से दूर हटे निजता का दंभ,
देखें हम जग की अनेकताओं में सत्य तुम्हारा एक।
जो पीड़ित पददलित सह रहे जीवन में लांछना अपार
सदियों से, मिल जाय तुम्हारी आशा का उनको संदेश
मुक्त वायु-सा, स्वप्न तुम्हारे जीवन के हो लें साकार
सत्य-अहिंसा के, खोयी आत्मा को फिर पा ले यह देश।
छूटें कृत्रिम भेद, विश्व में समरसता का स्वर गूँजे;
चिर-अविभक्त मनुजता को ही भावी मानव-शिशु पूजे।