gandhi bharati
एक ज्योति जो अनिर्वाप्य चिर-प्रलयनिशा की साँसों में
तनिक न दायेँ-बायेँ झुकती, एक सत्य जो सतत नवीन
मुक्त-काल-दिक्-संख्या से, रह सतत मरण-भुजपाशों में
धूमिल स्वर न कभी हो जिसका, एक अमर आत्मा की बीन।
एक हरित भूखंड चतुर्दिक ज्वाला की लपटों में शांत,
क्रुद्ध महासागर में एक अडिग मानवता का लघु द्वीप,
तारा एक नील तम लहरों में चिर-उज्वल, स्मित, चिर-कांत
शीतल एक स्रोत मरु में, मन एक अचल नैराश्य-समीप।
अविश्वास-झंझा में स्वस्थित प्राणों का आलोक लिये
ज्ञान एक सर्वोपरि, शंकाओं में चिर-अकलुष, चिर-दीप्त,
विश्व उपेक्षाभरा एक बल, राम नाम का अमृत पिये,
योगी एक मोह, ममता, सुख, दुःख से सतत अकाम-अलिप्त।
एक हिमालय खड़ा अडिग जो क्षण-क्षण आँधी-पानी में,
प्रलय-सिंधु-धृत एक मनुज-शिशु नव युग की अगवानी में,