geet ratnavali

दृश्य देखे यह सकल समाज,
कैसे रत्ना के माथे पर गिरी टूटकर गाज

सब खोया था प्रभु को खोकर
था मेरी झोली के अंदर
बस सिंदूर एक चुटकी भर

वह भी खोया आज

जायें आप, प्रेम से जायें
जग में अमर मान, यश पायें
क्यों मेरे हठ आड़े आयें

संन्यासी महराज!

अब मैं सीतानाथ-शरण में
जो न तोड़ते नाता क्षण में
वही ढकेंगे रहकर मन में

इस अबला की लाज

दृश्य देखे यह सकल समाज,
कैसे रत्ना के माथे पर गिरी टूटकर गाज