geet ratnavali
काल का रथ यदि उलटा जाता,
तो घर में रहकर ही, रत्ना! मैं प्रभु के गुण गाता
दोनों मिलकर साँझ-सवेरे
हरिमंदिर के देते फेरे
पर क्या करूँ! मार्ग से मेरे
कोई लौट न पाता
राजधर्म का पालन करने
त्यागी प्राणप्रिया रघुबर ने
जिस दिन छुआ कमंडल कर ने
छूटा जग से नाता
तन पर गैरिक पट धारण कर
विवश तुझे हूँ यह कहने पर
दे सुहाग इस झोली में भर
भिक्षा में, ‘ओ माता!’
काल का रथ यदि उलटा जाता,
तो घर में रहकर ही, रत्ना! मैं प्रभु के गुण गाता