geet ratnavali
नाथ | फिर क्यों हो विरह हमारा!
बंचित करें मुझे क्यों, जग में बहा प्रेम-रस-धारा!
ऊधो आप न मैं हूँ राधा
नारी कहाँ भक्ति में बाधा!
सोचें, मुक्ति-मंत्र जो साधा
किसने प्रथम उतारा!
सदा राम के सँग थी सीता
क्या न आपकी हूँ परिणीता!
स्वामी! जो बीता सो बीता
छोड़ें अब न दुबारा
दुख वियोग के बहुत सहाये
बस अब यही कृपा हो जाये
कर लें साथ, अंत जब आये
फूँकें निज कर द्वारा
नाथ! फिर क्यों हो विरह हमारा!
वंचित करें मुझे क्यों, जग में बहा प्रेम-रस-धारा