geet ratnavali

प्रिये! यों डिगा न मेरे प्रण को,
देख राम में ही तू अब से अपने जीवनधन को

तेरी ही पा सीख सुहावन
पाये मैंने प्रभु के दर्शन
तुच्छ न, रत्ना! तेरा जीवन

यों न दुखी कर मन को

विरह-मूल हैं यह जग सारा
पल दो पल का मिलन हमारा
रोकें लाख, काल की धारा

नहीं ठहरती क्षण को

राम नाम ही सत्य यहाँ पर
कर उसका ही जाप निरंतर
चही हृदय को मोह-मुक्त कर

काटे भव-बंधन को

प्रिये! यों डिगा न मेरे प्रण को,
देख राम में ही तू अब से अपने जीवनधन को